जानकी नाथ सहाय करें जानकी नाथ सहाय करें,
जब कौन बिगाड़ करे नर तेरो
सुरज मंगल सोम भृगु सुत बुध और गुरु वरदायक तेरो
राहु केतु की नाहिं गम्यता,
संग शनीचर होत हुचेरो
जानकी नाथ सहाय करें..
दुष्ट दु:शासन विमल द्रौपदी,
चीर उतार कुमंतर प्रेरो
ताकी सहाय करी करुणानिधि,
बढ़ गये चीर के भार घनेरो
जानकी नाथ सहाय करें..
जाकी सहाय करी करुणानिधि,
ताके जगत में भाग बढ़े रो
रघुवंशी संतन सुखदाय,
तुलसीदास चरनन को चेरो
जब जानकी नाथ सहाय करें,
जब जानकी नाथ सहाय करे,
तब कौन बिगाड़ करे नर तेरो
भावार्थ -
यह एक भक्ति गीत है जो भगवान राम की पत्नी सीता के रूप में जानकी नाथ की सहायता और रक्षा की भावना को व्यक्त करता है। इसमें कहा गया है कि जब जानकी नाथ सहायता करते हैं, तो कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार की समस्या या विपत्ति से नहीं घबराता है।
गीत में आगे कहा गया है कि भगवान राम की सहायता से सीता की लाज बचाई गई थी, जब दुशासन ने उनका चीर उतारने की कोशिश की थी। इसमें कहा गया है कि भगवान राम की सहायता से सीता की लाज बचाई गई थी और उनके चीर का भार बढ़ गया था।
गीत में आगे कहा गया है कि जिनकी सहायता भगवान राम करते हैं, उनके जीवन में सुख और समृद्धि आती है। इसमें कहा गया है कि भगवान राम की सहायता से व्यक्ति के जीवन में सुख और समृद्धि आती है और उनके चरित्र में सुधार होता है।
इस गीत के मुख्य भावार्थ हैं:
1. भगवान राम की सहायता: इसमें भगवान राम की सहायता और रक्षा की भावना को व्यक्त किया गया है।
2. सीता की लाज बचाई गई: इसमें सीता की लाज बचाई गई थी, जब दुशासन ने उनका चीर उतारने की कोशिश की थी।
3. सुख और समृद्धि: इसमें कहा गया है कि जिनकी सहायता भगवान राम करते हैं, उनके जीवन में सुख और समृद्धि आती है।
4. चरित्र में सुधार: इसमें कहा गया है कि भगवान राम की सहायता से व्यक्ति के चरित्र में सुधार होता है।
इस प्रकार, यह गीत भगवान राम की सहायता और रक्षा की भावना को व्यक्त करता है, और सीता की लाज बचाई गई थी, जब दुशासन ने उनका चीर उतारने की कोशिश की थी
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