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शनिवार, 14 दिसंबर 2024

तोरा मन दर्पण कहलाये-bhajan



तोरा मन दर्पण कहलाए,
भले, बुरे, सारे कर्मों को,
देखे और दिखाए ॥
मन ही देवता,
मन ही ईश्वर,
मन से बड़ा ना कोई,
मन उजियारा,
जब जब फैले,
जग उजियारा होए,
इस उजले दर्पन पर प्राणी,
धूल ना ज़मने पाए ॥

​तोरा मन दर्पण कहलाये,
भले, बुरे, सारे कर्मों को,
देखे और दिखाए ॥

सुख की कलियाँ,
दुःख के काँटे,
मन सब का आधार,
मन से कोई बात छूपे ना,
मन के नैन हजार,
जग से चाहे भाग ले कोई,
मन से भाग ना पाए ॥

​तोरा मन दर्पण कहलाये,
भले, बुरे, सारे कर्मों को,
देखे और दिखाए ॥

भावार्थ-

यह एक आध्यात्मिक गीत है जो मन की शक्ति और महत्व को व्यक्त करता है। इसमें कहा गया है कि मन एक दर्पण है जो हमारे सभी कर्मों को देखता है और दिखाता है, चाहे वे अच्छे हों या बुरे।

गीत में आगे कहा गया है कि मन ही देवता है और मन ही ईश्वर है। मन से बड़ा कोई नहीं है, और जब मन उजियारा होता है, तो पूरा जगत उजियारा हो जाता है। इसमें कहा गया है कि मन एक उजला दर्पण है जिस पर कोई धूल नहीं जम सकती है।

गीत में आगे कहा गया है कि मन सुख और दुःख दोनों का आधार है। मन से कोई बात छुपी नहीं रह सकती है, और मन के नैन हजार हैं जो सब कुछ देखते हैं। इसमें कहा गया है कि जग से भागने से कोई फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन मन से भागना असंभव है।

इस गीत के मुख्य भावार्थ हैं:

1. मन की शक्ति: इसमें मन की शक्ति और महत्व को व्यक्त किया गया है।
2. आध्यात्मिक ज्ञान: इसमें आध्यात्मिक ज्ञान और आत्म-ज्ञान की महत्ता को व्यक्त किया गया है।
3. सुख और दुःख: इसमें सुख और दुःख के बीच के संबंध को व्यक्त किया गया है।
4. आत्म-निरीक्षण: इसमें आत्म-निरीक्षण और आत्म-ज्ञान की महत्ता को व्यक्त किया गया है।

इस प्रकार, यह गीत मन की शक्ति और महत्व को व्यक्त करता है, और आध्यात्मिक ज्ञान और आत्म-ज्ञान की महत्ता को दर्शाता है
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