इस भजन के मुख्य भावार्थ हैं:
1. गुरु की महिमा: इसमें गुरु की महिमा और उनकी सहायता का वर्णन किया गया है।
2. गुरु-शिष्य संबंध: इसमें गुरु-शिष्य संबंध का वर्णन किया गया है, जिसमें गुरु देव हैं और शिष्य पुजारी है।
3. गुरु की सहायता: इसमें कहा गया है कि गुरु की सहायता से ही जीवन के संकटों को पार किया जा सकता है।
4. गुरु की दया: इसमें कहा गया है कि गुरु की दया और सहायता से ही जीवन के उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है।
इस प्रकार, यह भजन गुरु की महिमा और उनकी सहायता का वर्णन करता है, और गुरु-शिष्य संबंध का महत्व बताता है
गुरुदेव मेरी नैया उस पार लगा देना
उस पार लगा देना,
अब तक तो निभाया है,
आगे भी निभा लेना,
गुरुदेव मेरी नईया,
उस पार लगा देना ॥
तुम देव मैं पुजारी,
तुम इष्ट मैं उपासक,
ये बात अगर सच है,
सच कर के दिखा देना,
गुरुदेव मेरी नईया,
उस पार लगा देना ॥
दल बल के साथ माया,
घेरे जो मुझे आकर,
तुम देखते ना रहना,
गर आ के बचा लेना,
गुरुदेव मेरी नईया,
उस पार लगा देना ॥
मैं मोह झंझटो में,
तुमको ना भूल जाऊँ,
हे नाथ दया करना,
मुझको ना भुला देना,
गुरुदेव मेरी नईया,
उस पार लगा देना ॥
गुरुदेव मेरी नैया,
उस पार लगा देना,
अब तक तो निभाया है,
आगे भी निभा लेना,
गुरुदेव मेरी नईया,
उस पार लगा देना ॥
भावार्थ-
यह एक भक्ति भजन है जो गुरु की महिमा और उनकी सहायता का वर्णन करता है। इसमें गुरु को नैया के रूप में वर्णित किया गया है, जो जीवन के सागर को पार करने में सहायता करता है।
भजन में आगे कहा गया है कि गुरु देव हैं और भक्त पुजारी है, और यह बात अगर सच है तो गुरु को इसे सच कर के दिखा देना चाहिए। इसमें कहा गया है कि गुरु की सहायता से ही जीवन के सागर को पार किया जा सकता है।
भजन में आगे कहा गया है कि जब माया और दल बल के साथ आकर भक्त को घेरते हैं, तो गुरु को आकर बचा लेना चाहिए। इसमें कहा गया है कि गुरु की दया और सहायता से ही जीवन के संकटों को पार किया जा सकता है।
भजन में आगे कहा गया है कि भक्त मोह और झंझटों में फंस जाता है, लेकिन गुरु को उसे न भूलना चाहिए और उसकी सहायता करनी चाहिए। इसमें कहा गया है कि गुरु की सहायता से ही जीवन के उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है।