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रविवार, 2 नवंबर 2025

शिव तांडव स्तोत्र



शिव तांडव स्तोत्र रावण ने लिखा था। रावण को भगवान शिव का एक महान भक्त माना जाता है और इस स्तोत्र की रचना उन्होंने भगवान शिव की स्तुति में की थी।

रचयिता:
रावण, जो लंका का शासक और शिव का भक्त था।

विषय:
स्तोत्र भगवान शिव के तांडव नृत्य, उनकी शक्ति और दिव्यता का वर्णन करता है।

रचना का संदर्भ:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण ने यह स्तोत्र तब रचा था जब वह कैलाश पर्वत को उठा रहा था और शिवजी ने उसे अपने पैर के अंगूठे से दबा दिया था, जिससे वह दर्द से कराह उठा था। इस दर्द और भक्ति में ही उसने स्तोत्र की रचना की थी।

       
    ||शिव तांडव स्तोत्र||
जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥

जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।
विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥

धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।
कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥

जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।
मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥

सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥

ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्‌ ।
सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं
महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥

कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥

नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥

प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा-
विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥

अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌ ।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर-
द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-
धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥

कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्‌
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌कदा सुखी भवाम्यहम्‌॥13॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥15॥


सोमवार, 23 दिसंबर 2024

मूषक सवारी लेके आना गणराजा ||फ़िल्मी तर्ज – कौन दिशा में ले के चला ||Mushak Sawari leke aana ganraja



मूषक सवारी लेके आना गणराजा 




इस भजन  के मुख्य भावार्थ हैं:

1. भगवान गणेश की महिमा: इसमें भगवान गणेश की महिमा और उनके आगमन का स्वागत किया गया है।
2. भगवान गणेश की पूजा: इसमें भगवान गणेश की पूजा और भोग लगाने का वर्णन किया गया है।
3. भगवान गणेश की कृपा: इसमें भगवान गणेश की कृपा और उनके द्वारा सुख और दुःख को हराने का वर्णन किया गया है।
4. भगवान गणेश के साथ जुड़ना: इसमें भगवान गणेश के साथ जुड़ने और उनके चरणों में ठिकाना बनाने का वर्णन किया गया है

मूषक सवारी ले के,
आना गणराजा,
रिद्धि सिद्धि को ले आना,
आके भोग लगाना,
मेरे आंगन में, आंगन में,
मुषक सवारी लेके,
आना गणराजा ॥

लाल सिंदूर का टिका लगा के,
पान और फूल चड़ाउ,
मोदक लडूवन से भर थाली,
तुम को भोग लगाउ,
देख तुम्हारी महिमा निराली,
गाउं बारम्बार हो,
कारज मेरे सब,
शुभ कर जाना,
रिद्धि सिद्धि को ले आना,
आके भोग लगाना,
मेरे आंगन में, आंगन में,
मुषक सवारी लेके,
आना गणराजा ॥

सुख करता तुम,
दुःख के हरता,
सबके प्यारे गणेश हो,
प्यार दुलार हमेशा रहे प्रभु,
ना हो कोई कलेश हो,
सब की नैया पार किये हो,
मुझको भी दो तार,
चरणों में तेरे प्रभु मेरा ठिकाना,
रिद्धि सिद्धि को ले आना,
आके भोग लगाना,
मेरे आंगन में, आंगन में,
मुषक सवारी लेके,
आना गणराजा ॥


मूषक सवारी लेके,
आना गणराजा,
रिद्धि सिद्धि को ले आना,
आके भोग लगाना,
मेरे आंगन में, आंगन में,
मुषक सवारी लेके,
आना गणराजा ॥

भावार्थ-

यह एक भक्ति गीत है जो भगवान गणेश की महिमा और उनके आगमन का स्वागत करता है। इसमें भगवान गणेश को मूषक सवारी पर आने के लिए आमंत्रित किया गया है और उन्हें रिद्धि-सिद्धि के साथ आने के लिए कहा गया है।

गीत में आगे कहा गया है कि भगवान गणेश को लाल सिंदूर का टिका लगाकर, पान और फूल चढ़ाकर, और मोदक लडूवन से भरे थाली से भोग लगाया जाएगा। इसमें भगवान गणेश की महिमा का वर्णन किया गया है और उन्हें सबके प्यारे गणेश कहा गया है।

गीत में आगे कहा गया है कि भगवान गणेश सुख करते हैं, दुःख को हरते हैं, और सबके प्यारे हैं। इसमें भगवान गणेश से अनुरोध किया गया है कि वे हमेशा प्यार और दुलार से हमारे साथ रहें और हमारे जीवन में कोई कलेश न हो।


शिव तांडव स्तोत्र

शिव तांडव स्तोत्र रावण ने लिखा था। रावण को भगवान शिव का एक महान भक्त माना जाता है और इस स्तोत्र की रचना उन्होंने भगवान शिव की स्तुति में की...